मेरी सोचों पे यह किसका पहरा है आजकल,
किताब-ए-ज़िन्दगी के हर वरक पर तेरा चेहरा है आजकल.
आजकल मुझे यह क्या हो रहा है, तुम्हें कुछ मालूम है,
जागती आँखों में एक ख्वाब सुनहरा है आजकल.
मेरे हर एक शेर में तुम्हारी तस्वीर उभर आती है,
मेरी ग़ज़लों से तुम्हारा रिश्ता गहरा है आजकल.
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
कल 09/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत खूब...
ReplyDeleteबहुत अच्छी नज़्म! शुक्रिया...
ReplyDeleteग़ज़ल की पसंदीदगी के लिए शुक्रिया, आप लोगों की मुहब्बत और तज़ीरायी मिलती रही तो आगे भी ख़ूबसूरत ग़ज़लों का तोहफा लेकर हाजिर-ए-ख़िदमत होता रहूँगा |
ReplyDeleteबहुत ,बहुत ,बहुत ही सुन्दर लिखा है....
ReplyDeleteखूबसूरत भाव ..
ReplyDeleteमेरी ग़ज़लों से तुम्हारा रिश्ता गहरा है आजकल.......बहुत खूब!!
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत भाव समन्वय्।
ReplyDeletesundar bhavmai post bdhai sveekar karen.
ReplyDeleteaap sabhi ko mera tahedil se sukriya..........
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