Tuesday 7 February 2012

मेरी सोचों पे यह किसका पहरा है आजकल


मेरी  सोचों   पे   यह   किसका  पहरा   है    आजकल,
किताब-ए-ज़िन्दगी के  हर  वरक पर तेरा  चेहरा है    आजकल.

आजकल    मुझे    यह    क्या  हो रहा है, तुम्हें कुछ मालूम है,
जागती    आँखों    में    एक   ख्वाब  सुनहरा  है  आजकल.

मेरे   हर     एक    शेर     में    तुम्हारी   तस्वीर उभर आती  है,
मेरी    ग़ज़लों    से      तुम्हारा    रिश्ता     गहरा   है  आजकल.

11 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया सर!

    सादर

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  2. कल 09/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. बहुत अच्छी नज़्म! शुक्रिया...

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  4. ग़ज़ल की पसंदीदगी के लिए शुक्रिया, आप लोगों की मुहब्बत और तज़ीरायी मिलती रही तो आगे भी ख़ूबसूरत ग़ज़लों का तोहफा लेकर हाजिर-ए-ख़िदमत होता रहूँगा |

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  5. बहुत ,बहुत ,बहुत ही सुन्दर लिखा है....

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  6. मेरी ग़ज़लों से तुम्हारा रिश्ता गहरा है आजकल.......बहुत खूब!!

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  7. बहुत ही खूबसूरत भाव समन्वय्।

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  8. sundar bhavmai post bdhai sveekar karen.

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