हर बातों को वो सच्चाई की तराज़ू पर तौलने लगता है,
जादूगर है वह उनके अशआर में अल्फाज़ बोलने लगता है.
बड़े पारसा बने फिरते है वह अहबाब की महफ़िल में,
एक ज़रा हरी पत्ती की झलक देखी, इमान डोलने लगता है.
जो ख़ुद को समझते हैं आलिज़र्फ़ और शराफ़त वाले,
तबीयत पर ग्रां गुज़रे फिर गुस्सा उनका राज़ खोलने लगता है.
उनकी बातों से ख़ुशबू आती है प्यार और वफ़ा की.
अपनी अंदाज़-ए- गुफ़्तगू से फिज़ा में रस घोलने लगता है,
सख्त नालां सही बच्चों के हरकतों से, क़सीम
हल्की सी खराश भी आये, माँ का प्यार बोलने लगता है.
*************
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है आपकी ,बहुत बहुत आभार......
ReplyDeleteरजनी जी ग़ज़ल की पसंदीदगी केलिए शुक्रिया
ReplyDelete